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आयुर्वेद में मांसाहार के प्रयोग का कारण : मेरे विचार

Ayurvigyan with Dr.Swastik
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1. चरक के अनुसार मांसाहार शरीर को पोषण देता है. ऋषि चरक ने कभी कभी मांस खाने का उल्लेख किया है. लेकिन वो मांस खाने के लिए कुछ विशेष अवस्थाओं में ही करते हैं. जैसे शारीरिक क्षय, अति क्षीण या कमजोरी के कारण मांसपेशियां कार्य करने में समर्थ हो जाएँ. परन्तु केवल और केवल मांसाहार मूल आयुर्वेदिक सिद्धांतों शामिल नहीं है.

2. ये मांस भक्षण ऐसा नहीं है जैसा आजकल हो रहा है. ये रोग की गम्भीरता पर निर्भर था कि किसी रोगी को मांस दिया जाना चाहिए या नहीं. चरक के समय के जानवर फ़ार्म हाउस में नहीं रखे जाते थे और न ही उन्हें कृत्रिम रूप से सिर्फ मांस भक्षण के लिए पाला जाता था. उस समय जानवर जंगल में विचरते थे और उन्हें खाने के लिए शिकार करके ही मारा जाता था.

3. लेकिन आज के माहौल से हम तुलना करें तो आज मांस खाने के लिए अधिकाँश जानवरों को उनके मूल स्थान जंगल से उठा कर फार्म हाउस में पाला जा रहा है. साथ ही साथ मांस बढ़ाने के लिए उन्हें केमिकल रुपी जहर की खुराक खाने और इंजेक्शन के द्वारा दी जा रही है.

4. तो आज के परिपेक्ष्य में मांस खाना चरक के तर्क से वैसे भी अनुचित साबित हो जाता है. मेरे विचार से मांस का भक्षण उसी रोगी के लिए उचित है जहाँ शाकाहारी / हर्बल उपाय उसके जीवन को बचाने के लिए सीमित संख्या में उपलब्ध हों.

5. आयुर्वेद के अनुसार जो प्राक्रतिक तत्व जिस क्षेत्र में अधिक पाए जाते हैं उन प्राकृतिक तत्वों का बाहुल्य भी उस क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों में होता है. उदाहरण के लिए जलीय वातावरण में रहने वाले जीवों का मांस शुष्क क्षेत्र में रहने वाले जीवों के मांस से ज्यादा नम और भारी होगा. चरक के अनुसार अगर कोई जानवर अपने प्राकृतिक वातावरण में नहीं रह रहा है या उस भोगौलिक क्षेत्र का मूल निवासी नहीं है या किसी किसी ऐसे वातावरण में शिकार किया गया है जहाँ का माहौल उस के अनुरूप नहीं है या पशु विषाक्त है तो ऐसे मांस को नहीं खाना चाहिये.

यदि लोग आयुर्वेद में मांस खाने की बात के मर्म को नहीं समझ कर इस तथ्य के पीछे पड़के मांसाहार को जस्टिफाई करते है तो इसे मांस खाने की आपकी इच्छा को ऊपर बताई गयी कहानी जैसे ही जस्टिफाई करना समझा जाएगा !!!

मित्रों एक बार सोचिये कि यदि उस निरीह जानवर की जगह आप होते और आपकी गर्दन पकड के कोई काट रहा होता (जैसे कि तालिबान जैसे राक्षस अपने पागलपन को पूरा करने के लिए करते है ) तो आप पर क्या बीतती ?

इसलिए आइये हम सब भारत की परम्पराओं के अनुरूप जब तक संभव हो शाकाहार अपनाएँ और सिर्फ जीभ के स्वाद के लिए किसी की ह्त्या करके उसका जीवन नष्ट न करें.

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥“

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