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आधुनिक काल में जहां हर क्षेत्र में मानव ने प्रगति करी है और सफलता की ऊंचाइयां छुई हैं वहीं बीमारियों का शिकार होने में भी बहुत आगे हो गया है ।अगर आज के समय में बीमारियों की बात पर आयें जाए तो ऐसे अनेक रोग हैं जिन्होंने इस भागती दौड़ती जिंदगी में हमारे शरीर में न जाने क्या क्या उपद्रव मचा दिए हैं। आज लगभग हर व्यक्ति को अपने जीवन में कमर दर्द का अनुभव होता है। धीरे धीरे कमर दर्द भी एक बहुत बड़ी कष्टदायक समस्या बनी हुई है और अब ये दुनिया में एक महामारी के रूप में जानी जाने लगी है। आज हर उम्र के लोग इससे परेशान हैं और दुनिया भर में इसके आसान इलाज की खोज जारी है। यह गंभीर दर्द कई बार स्लिप डिस्क में बदलता है तो कभी-कभी इससे साइटिका भी हो सकता है।
स्लिप्ड डिस्क नाम की बीमारी को समझने के लिए रीढ की हड्डी की पूरी बनावट को समझना जरूरी है। स्पाइनल कॉर्ड या रीढ की हड्डी पर हमारे शरीर का पूरा वजन टिका होता है। यह शरीर को गति प्रदान करती है और पेट, गर्दन छाती और नसों की सुरक्षा करती है। स्पाइन वर्टिब्रा से मिलकर यह बनती है। यह सिर के निचले हिस्से से शुरू होकर टेल बोन तक होती है। स्पाइन को तीन भागों में बांटा जाता है-
1. गर्दन या सर्वाइकल वर्टिब्रा
2. छाती (थोरेसिक वर्टिब्रा)
3. लोअर बैक (लंबर वर्टिब्रा)
स्पाइन कॉर्ड की हड्डियों के बीच कुशन जैसा एक नर्म पदार्थ होता है, इसे ही डिस्क कहा जाता है। ये डिस्क आपस में एक-दूसरे से जुडी होती हैं और रीढ़ की हड्डी के बिलकुल बीच में स्थित होती हैं। डिस्क रीढ़ की हड्डी के लिए शॉक एब्जॉर्बर जैसा काम करती है।
आगे-पीछे, दायें-बायें घूमने से डिस्क का फैलाव होता है। गलत तरीके से काम करने, पढने, उठने-बैठने या झुकने से डिस्क पर लगातार जोर पडता है जिसके फलस्वरूप रीढ़ की हड्डी की नसों पर दबाव आ जाता है जो कमर में लगातार होने वाले दर्द का कारण बनता है।
अगर गौर से इसे समझा जाय तो यह कह सकते हैं कि स्लिप्ड डिस्क कोई बीमारी नहीं, शरीर की मशीनरी में तकनीकी खराबी है। इस तकनीकी खराबी में वास्तव में डिस्क स्लिप नहीं होती, बल्कि स्पाइनल कॉर्ड से कुछ बाहर को आ जाती है। डिस्क का बाहरी हिस्सा एक मजबूत झिल्ली से बना होता है और बीच में तरल जैलीनुमा पदार्थ होता है। डिस्क में मौजूद जैली या कुशन जैसा हिस्सा कनेक्टिव टिश्यूज के चारों ओर से बाहर की ओर निकल आता है और आगे बढा हुआ हिस्सा स्पाइन कॉर्ड पर दबाव बनाता है। उम्र के साथ साथ कार्टिलेज में प्रोटीन की मात्र घट जाती है जिससे उसके कोलेजन फाइबर्स टूटने लगते हैं । कार्टिलेज के नष्ट होने से सूजन आ जाती है और दोनों हड्डियाँ भी एक दूसरे पर रगड़ खाने लगती हैं । इससे दर्द होने लगता है और चलने फिरने में तकलीफ होने लगती है । कई बार उम्र के साथ-साथ यह तरल पदार्थ सूखने लगता है या फिर अचानक झटके या दबाव से झिल्ली फट जाती है या कमजोर हो जाती है तो जैलीनुमा पदार्थ निकल कर नसों पर दबाव बनाने लगता है, जिसकी वजह से पैरों में दर्द या सुन्न होने की समस्या होती है।
1. गलत ढंग से बैठना और दैनिक कामकाज करना इसके प्रमुख कारण हैं। लेट कर या झुक कर पढना या काम करना, कंप्यूटर के आगे बैठे रहना इसका कारण है।
2. वजन उठाने, अनियमित दिनचर्या, झटका लगने, अचानक झुकने, गलत तरीके से उठने-बैठने की वजह से दर्द हो सकता है।
3. सुस्त जीवनशैली, शारीरिक गतिविधियां कम होने, व्यायाम या पैदल न चलने से भी मसल्स कमजोर हो जाती हैं। बहुत ज़्यादा थकान से भी रीढ़ की हड्डी पर जोर पडता है और एक लिमिट के बाद यह समस्या शुरू हो जाती है।
4. बहुत ज़्यादा शारीरिक मेहनत, गिरने, फिसलने, दुर्घटना में चोट लगने, देर तक ड्राइविंग करने से भी डिस्क पर प्रभाव पड सकता है।
5. उम्र बढने के साथ-साथ हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और इससे डिस्क पर जोर पडने लगता है।
1. आमतौर पर 30 से 50 वर्ष की उम्र में कमर के निचले हिस्से में स्लिप्ड डिस्क की समस्या हो सकती है।
2. 40 से 60 वर्ष की आयु तक गर्दन के पास सर्वाइकल वर्टिब्रा में समस्या होती है।
3. विशेषज्ञों के अनुसार अब 20-25 वर्ष के युवाओं में भी स्लिप डिस्क के लक्षण तेजी से देखे जा रहे हैं। देर तक बैठ कर कार्य करने के अलावा स्पीड में बाइक चलाने या सीट बेल्ट बांधे बिना ड्राइविंग करने से भी यह समस्या बढ रही है। अचानक ब्रेक लगाने से शरीर को झटका लगता है और डिस्क को नुक्सान हो सकता है।
1. नसों पर दबाव के कारण कमर दर्द, पैरों में दर्द या पैरों, एडी या पैर की अंगुलियों का सुन्न होना
2. पैर के अंगूठे या पंजे में कमजोरी
3. स्पाइनल कॉर्ड के बीच में दबाव पडने से कई बार हिप या थाईज के आसपास सुन्न महसूस करना
4. समस्या बढने पर यूरिन-स्टूल पास करने में परेशानी
5. रीढ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द
6. चलने-फिरने, झुकने या सामान्य काम करने में भी दर्द का अनुभव। झुकने या खांसने पर शरीर में करंट सा अनुभव होना।
दर्द लगातार बम रहना, एक्स-रे या एमआरआइ, लक्षणों और शारीरिक जांच से डॉक्टर को पता चलता है कि कमर या पीठ दर्द का सही कारण क्या है और क्या यह स्लिप्ड डिस्क है।जांच के दौरान स्पॉन्डलाइटिस, डिजेनरेशन, ट्यूमर, मेटास्टेज जैसे लक्षण भी पता लग सकते हैं।
कई बार एक्स-रे से भी सही कारणों का पता नहीं चल पाता। इस अवस्था में सीटी स्कैन, एमआरआइ या माइलोग्राफी (स्पाइनल कॉर्ड कैनाल में एक इंजेक्शन के जरिये) से सही-सही स्थिति का पता लगाया जा सकता है। इससे पता लग सकता है कि यह किस तरह का दर्द है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि डॉक्टर ही बता सकता है कि मरीज को किस जांच की आवश्यकता है।
स्लिप्ड डिस्क के ज्यादातर मरीजों को आराम करने और फिजियोथेरेपी से राहत मिल जाती है। फिजियोथेरेपी भी दर्द कम होने के बाद ही कराई जाती है। इसमें दो से तीन हफ्ते तक पूरा आराम करना चाहिए। दर्द कम करने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दर्द-निवारक दवाएं, मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाली दवाएं या कभी-कभी स्टेरॉयड्स भी दिए जाते हैं। अधिकतर मामलों में सर्जरी के बिना भी समस्या हल हो जाती है। संक्षेप में इलाज की प्रक्रिया इस तरह है-
1. दर्द-निवारक दवाओं के माध्यम से रोगी को आराम पहुंचाना
2. कम से कम दो से तीन हफ्ते का बेड रेस्ट
3. दर्द कम होने के बाद फिजियोथेरेपी या कीरोप्रैक्टिक ट्रीटमेंट
4. कुछ मामलों में स्टेरॉयड्स के जरिये आराम पहुंचाने की कोशिश
5. परंपरागत तरीकों से आराम न पहुंचे तो सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है।
लेकिन सर्जरी होगी या नहीं, यह निर्णय पूरी तरह विशेषज्ञ का होता है। ऑर्थोपेडिक्स और न्यूरो विभाग के विशेषज्ञ जांच के बाद सर्जरी का निर्णय लेते हैं। यह निर्णय तब लिया जाता है, जब स्पाइनल कॉर्ड पर दबाव बढने लगे और मरीज का दर्द इतना बढ जाए कि उसे चलने, खडे होने, बैठने या अन्य सामान्य कार्य करने में असह्य परेशानी का सामना करने पडे। ऐसी स्थिति को इमरजेंसी माना जाता है और ऐसे में पेशेंट को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत होती है, क्योंकि इसके बाद जरा सी भी देरी पक्षाघात का कारण बन सकती है।
जांच और एमआरआइ रिपोर्ट सही हो तो स्लिप्ड डिस्क की सर्जरी आमतौर पर सफल रहती है। सर्जरी के बाद रोगी को कम से कम 15-20 दिन तक बेड रेस्ट करना पडता है। इसके बाद कमर की कुछ एक्सरसाइजेज कराई जाती हैं। ध्यान रहे कि इसे किसी कुशल फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा ही कराएं। शुरुआत में हलकी एक्सरसाइज होती हैं, धीरे-धीरे इनकी संख्या बढाई जाती है। मरीज को हार्ड बेड पर सोना चाहिए, मांसपेशियों को पूरा आराम मिलने तक आगे झुक कर कोई काम करने से बचना चाहिए। सर्जरी के बाद भी जीवनशैली सही रहे, यह जरूरी है। वजन नियंत्रित रहे, आगे झुक कर काम न करें, भारी वजन न उठाएं, लंबे समय तक एक ही पोश्चर में बैठने से बचें और कमर पर आघात या झटके से बचें।
1. प्रतिदिन तीन से छह किलोमीटर पैदल चलें। हर व्यक्ति के लिए यह सर्वोत्तम व्यायाम है ।
2. देर तक स्टूल या कुर्सी पर झुक कर न बैठें।
3. शारीरिक श्रम मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। लेकिन इतना भी परिश्रम न करें कि शरीर को आघात पहुंचे।
4. वज़न कम करें। डायबिटीज या बी पी हो तो उसको कंट्रोल करें ।देर तक न तो एक ही स्थिति में खडे रहें और न एक स्थिति में बैठे रहें।
5. किसी भी सामान को उठाने या रखने में जल्दबाजी न करें। पानी से भरी बाल्टी उठाने, आलमारियां-मेज खिसकाने, भारी सूटकेस उठाते समय सावधानी बरतें। ये सारे कार्य आराम से करें और जल्दबाजी न बरतें।
6. अगर भारी सामान उठाना पडे तो उसे उठाने के बजाय धकेल कर दूसरे स्थान पर ले जाने की कोशिश करें।
7. हाई हील्स और फ्लैट चप्पलों से बचें। रिसर्च से पता चला है कि हाई हील्स से कमर पर दबाव पडता है। साथ ही पूरी तरह फ्लैट चप्पलें भी पैरों के आर्च को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे शरीर का संतुलन बिगड सकता है।
8. सीढियां चढते-उतरते समय विशेष सावधानी रखें।
9. कुर्सी पर सही स्थिति में बैठें। एक पैर पर दूसरा पैर चढा कर न बैठें।
10. जमीन से कोई सामान उठाना हो तो झुकें नहीं, बल्कि किसी छोटे स्टूल पर बैठें या घुटनों के बल नीचे बैठें और सामान उठाएं।
11. अपना वजन नियंत्रित रखें। वजन बढने और खासतौर पर पेट के आसपास चर्बी बढने से रीढ की हड्डी पर सीधा प्रभाव पडता है।
12. बहुत मुलायम और बहुत सख्त गद्दे पर न सोएं। स्प्रिंगदार गद्दों या ढीले निवाड वाले पलंग पर सोने से भी बचें।
13. पीठ के बल सोते हैं तो कमर के नीचे एक टॉवल फोल्ड करके रखें, इससे रीढ को सपोर्ट मिलेगा।
14. कभी भी ज़्यादा मोटा तकिया सिर के नीचे न रखें। साधारण और सिर को हलकी सी ऊंचाई देता तकिया ही अच्छा होता है।
15. अगर देर तक खडे होकर काम करना पडे तो एक पैर को दूसरे पैर से ७-८ इंच ऊपर किसी स्टूल पर रखना चाहिए।
16. अचानक झटके के साथ न उठें-बैठें।
17. देर तक ड्राइविंग करनी हो तो गर्दन और पीठ के लिए कुशंस रखें। ड्राइविंग सीट को कुछ आगे की ओर रखें, ताकि पीठ सीधी रहे।
18. दायें-बायें या पीछे देखने के लिए गर्दन को ज्यादा घुमाने के बजाय आप अपने शरीर को घुमाएं।
19. पेट के बल या उलटे होकर न सोएं।
20. अधिक देर तक कमर झुका कर काम न करें। अपनी पीठ को हमेशा सीधा रखें।
जिन लोगों को स्लिप डिस्क या साइटिका की तकलीफ है, वे भुजंगासन से लाभ उठा सकते हैं, लेकिन सावधानी के साथ. संस्कृत में भुजंग का अर्थ है सांप और यह आसन ऐसा है, जैसे सांप ने फन उठाया हो.
आसन की विधि : पेट के बल लेट जाएं और हाथों को जमीन पर कंधों के नीचे रखें. अब श्वास लेते हुए नाभि को जमीन पर ही रखते हुए छाती और सिर को ऊपर उठाएं और पीठ को कमान की तरह मोड़ें. पूरे शरीर को उतना खींचे जितना संभव हो. फिर धीरे-धीरे श्वास अंदर लें और छोड़ते हुए सिर को नीचे लाएं.
लाभ : पीठ की, उदर की और शरीर के ऊपरी भाग की मांसपेशियां मजबूत होती हैं. यह आसन रीढ़-तंत्रिका में हुए विस्थापन को ठीक करता है और सिम्पैथेटिक नाड़ियों को बल प्रदान करता है. किसी भी कारण से पीठ दर्द में इस आसन से काफी लाभ होता है.
सावधानी : अगर आप पेप्टिक अल्सर, हर्निया या हाइपरथायरॉयड से पीड़ित हों, तो यह आसन न करें. ध्यान रखें कि जब शरीर को पीछे की तरफ मोड़ते हैं, तो जोर का झटका न लगे, क्योंकि इससे मांसपेशियों को सख्त चोट आ सकती है.
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“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥“
शेष अगली पोस्ट में…..
प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में,
आपका अपना,
चिकित्सा अधिकारी
( आयुष विभाग , उत्तराखंड शासन )
(निःशुल्क चिकित्सा परामर्श, जन स्वास्थ्य के लिए सुझावों तथा अन्य मुद्दों के लिए लेखक से drswastikjain@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )
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