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भारतीय चिकित्सा के अच्छे दिन आ गए

Ayurvigyan with Dr.Swastik
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने की अपील करने के बाद सरकार में ‘आयुष’ का अलग मंत्रालय बनाया है। इस कदम से देश भर के लाखों आयुष चिकित्सकों में उत्साह और प्रसन्नता की लहर दौड गयी है। लेकिन कुछ लोगों के मन में प्रश्न भी उठने लगा है कि आयुष चिकित्सा के अलग से मंत्रालय को बनाने कि क्या जरूरत थी जबकि इसे अभी तक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन चलाया जा रहा था।

दरअसल इसकी शुरुआत एकदम से नहीं हुई है; मार्च 2013 में डा.मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की लोक लेखा समिति ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संबंध में लोकसभा में पेश की गयी अपनी 71वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की थी। आयुष इलाज पद्धतियों को मुख्यधारा में लाने के लिए की गयी विभिन्न पहलों पर गौर करते हुए समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आयुष विभाग पर्याप्त बजटीय आवंटन, समर्पित आयुष प्रशासनिक व्यवस्था तथा श्रमशक्ति के अभाव जैसी अड़चनों से लगातार जूझ रहा है। समिति ने अपनी पुरानी सिफारिश को दोहराते हुए कहा था कि आयुष विभाग को देशी चिकित्सा प्रणाली मंत्रालय या आयुष मंत्रालय नाम से एक पूर्ण मंत्रालय में बदल दिया जाए जिससे कि आयुर्वेदिक,सिद्ध,यूनानी,योग,प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी जैसी सदियों से अपनायी जा रही पारंपरिक इलाज पद्धतियों का प्रोत्साहन कर उन्हें लोकप्रिय बनाया जा सके। लगता है कि उसी रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने आयुष के अलग मंत्रालय का गठन किया है।

वास्तव में यह ज़रूरत कुछ वर्षों में ही नहीं आई है बल्कि इसका गठन यदि स्वतंत्रता के बाद ही कर दिया गया होता तो आज भारत के पास भी अपनी राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति द्वारा न केवल भारत के नागरिकों का बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान बनाने का अवसर मिल जाता।

भारतीय चिकित्‍सा पद्धति एवं होम्‍योपैथी विभाग की स्‍थापना मार्च, 1995 में की गई थी। नवम्बर 2003 में इसका नाम बदल कर आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्‍सा, यूनानी, सिद्ध एवं होम्‍योपैथी (आयुष) विभाग रखा गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्‍सा, यूनानी, सिद्ध एवं होम्‍योपैथी चिकित्‍सा पद्धतियों में शिक्षा और अनुसंधान के विकास पर ध्‍यान केंद्रित किया जा सके। विभाग का गठन आयुष से संबंधित शैक्षिक मानकों के उन्‍नयन, औषधों के गुणवत्‍ता नियंत्रण एवं मानकीकरण, औषधीय पादपों की उपलब्‍धता में सुधार, भारतीय चिकित्‍सा पद्धतियों की राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर प्रभावकारिता के बारे में अनुसंधान और विकास करने के साथ-साथ उनके बारे में जागरूकता उत्‍पन्‍न करने के लिए हुआ था।

आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान अब एक स्वतंत्र चिकित्सा प्रणाली के रूप में उभर रही है और आयुष डॉक्टरों में लगभग 63% आयुर्वेद अभ्यास से ही लोगों की सेवा कर रहे हैं। फिर भी, आयुष चिकित्सकों की इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इनकी क्षमताओं का पूर्ण रूप से उपयोग नहीं किया जा सका है जिससे लाखों की संख्या में उपलब्ध प्रशिक्षित चिकित्सकों पर सरकार द्वारा किया जाने वाली पूंजी अनुपयोगी जा रही है। अब सरकार ने भारत में पाश्चात्य चिकित्सा और आयुष चिकित्सा उपलब्धता के बीच गहरी होती जा रही खाई को भरने के लिए उपलब्ध आयुष मानव संसाधनों के बेहतर उपयोग करने के लिए कदम उठा ही लिया है।

आयुष का अलग मंत्रालय बनाने बाद भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के लिए मिलने वाले बजट में बहुत अधिक वृद्धि हो जायेगी जिससे अब तक बजट की कमी से अधूरे पड़े कार्य तेज़ी से पूरे होने लग जायेंगे। साथ ही हर कार्य के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की मंजूरी की बाट जोहने से भी मुक्ति मिल जायेगी। नया मंत्रालय बनने से आयुष के विकास के लिए नयी योजनाओं को बनाने के लिए अधिक विशेषज्ञ और मानव संसाधन की उपलब्धता हो जायेगी। साथ ही पूर्णकालिक आयुष योजनाकारों की उपलब्धता भी होने की पूरी पूरी संभावना है। इसके अलावा वित्तीय स्तर पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन रहकर कम बजट में कार्य करने से भी मुक्ति मिल जायेगी।

विश्व में आधुनिक तकनीकी प्रगति करने के बाद ऎसी दवाएं बन चुकी हैं जो तीव्रगामी है, आशुकारी हैं,किसी भी बीमारी में तात्कालिक आराम दे देती हैं। पर उन्हें यह भी समझ में आ गया है कि कुछ देर के लिए आराम करने वाले इलाज़ से फायदा कम और नुक्सान अधिक हो रहे हैं। इस कारण अब ऐसी औषधियों पर रिसर्च हो रही है जो लंबे समय तक और बिना शरीर को नुक्सान करते हुए बीमारी को जड़ से ही मिटा दे। उनकी यही खोज पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों पर आकर रुक जाती है जिसमें भारत की आयुर्वेद चिकित्सा मुख्य रूप से कारगार पायी जा रही है। ब्रिटेन , संयुक्त अरब अमीरात , स्वीडन , इंडोनेशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका पहले से ही आयुर्वेद को चिकित्सा सेवा प्रणाली के रूप में मान्यता दे चुके हैं और तीस से अधिक देश आयुर्वेद को अपने अपने देश में चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता देने जा रहे हैं।

आयुष प्रणाली और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के बेहतर तालमेल से भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा साथ ही चिकित्सा स्वास्थ्य के क्षेत्र में दूरगामी कार्य योजना विकसित होकर और वैश्विक स्तर पर पब्लिक हेल्थ के मॉडल विकसित करने की संभावनाएं और बढ़ जाएँगी। दरअसल भारत में चिकित्सा सेवाओं का फाइव स्टार मॉडल सफल नहीं हो सकता है जैसा की पाश्चात्य देशों में होता है। भारत के लिए यही संभावना है कि आयुष प्रणाली द्वारा दुनिया भर के सभी देशों में एक पूर्ण चिकित्सा स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में आयुर्वेद की स्वीकार्यता स्थापित करें और मान्य चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्थापित करने के लिए काम करे।

आयुष चिकित्सकों की मंत्रालय से उम्मीदें-

1. आयुर्वेद चिकित्सा को अधिक रिजल्ट ओरिएंटेड बनाने के लिए कार्य करना। साथ साथ आयुर्वेद के चिकित्सकीय पहलुओं को वैज्ञानिक समर्थन दिलवाने के लिए उपयुक्त प्लेटफॉर्म तैयार करना। आयुष स्वास्थ्य सेवाओं को सभी प्रकार की चिकित्सा सेवाओं और संस्थाओं में आवश्यक और अभिन्न अंग बनाने की दिशा में आगे बढ़ना।

2. जलवायु और मिट्टी की व्यापक विविधता के साथ भारत के पास वैश्विक फार्मास्युटिकल बाजार में पैर जमाने के लिए उचित वातावरण तैयार करना।

3. हमें यह तथ्य भी स्वीकारना पड़ेगा कि इंडस्ट्री और सरकार के स्तर से आयुष चिकित्सा की क्षमताओं के व्यावसायिक पहलुओं को अभी तक नज़र अंदाज़ ही किया जाता रहा है। आयुष चिकित्सा के विकास के लिए इसमें हर शहर में स्पेशलिटी हॉस्पिटल्स की श्रंखला शुरू करने का समय आ चुका है।

4. यदि भविष्य में इसे व्यावसायिक रूप से सफल बनाना है तो अभी से ही आयुष चिकित्सा के लिए समुचित कार्ययोजना और उसके लिए आवश्यक संसाधनों को जुटाने के लिए प्रयास शुरू कर देने चाहिए।

5. इन प्रयासों में सबसे प्रमुख है देशभर में उपलब्ध लाखों आयुष चिकित्सकों को राष्ट्रीय कार्यक्रमों और चिकित्सा की मुख्यधारा में शामिल करके उनको सम्मान देना जिसे अभी तक हर स्तर पर नकारा जाता रहा है।

6. साथ ही साथ आयुष मंत्रालय के पास यह चुनौती भी है कि कैसे आयुष को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर पाश्चात्य चिकित्सा प्रणाली के समानांतर खड़ा करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस चिकित्सा की पहचान बनायी जाय। इसके लिए आयुष शिक्षा प्रणाली में तत्काल मूलभूत परिवर्तनों की जरूरत है।

7. हमारे पास सकारात्मक बात है वह यह कि यहाँ असीमित संख्या में आयुष चिकित्सकों के रूप में मानव संसाधन उपलब्ध हैं, बस जरूरत है कि इन संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाय। साथ ही साथ यह अवसर भी है कि किस तरह विदेशों में आयुष चिकित्सा को मान्य चिकित्सा प्रणाली के रूप में शामिल किया जाय।

8. वर्तमान में आयुष चिकित्सा की सफलता के बारे में गहनता से विचार करें तो पता चलता है कि इसमें व्यक्तिगत स्तर पर अलग अलग मंचों से रोगियों पर सक्सेस स्टोरीज़ के अनेक उदाहरण तो मिल जाते हैं लेकिन बृहत स्तर पर एक सुविकसित चिकित्सा प्रणाली के रूप में आयुष इंडस्ट्री की स्थापना नहीं हो पायी है। इस पर भी कार्य करना है।

9. जिस प्रकार भारत अब एक स्थापित मेडिकल टूरिज्म के स्पॉट के रूप में विकसित हो चुका है; उसी प्रकार आयुष चिकित्सा के लिए भी देश विदेश से इलाज करवाने भारत में मरीज़ आयें इसके लिए भी प्रयास करने होंगे। केरल की आयुर्वेदीय पंचकर्म चिकित्सा की विदेशों में सफलता का उदाहरण हमारे सामने है।

10. आयुर्वेद के अंतर्राष्ट्रीयकरण से ही इस चिकित्सा प्रणाली को अन्य स्थापित चिकित्सा प्रणालियों के साथ मिलकर स्वास्थ्य सेवाओं में एक अलग पहचान मिल सकेगी।

11. आयुष मंत्रालय के समक्ष यह भी चुनौती होगी कि US, यूरोपियन, WHO guidelines के अनुसार और उन्हीं के स्वामित्व वाली मानकीकरण संस्थाओं के स्थापित pharmaceutical प्रोटोकॉल्स के अनुसार चलते हुए आयुष दवा उद्योग की विदेशी बाज़ारों में उपस्थिति भी दर्ज़ करवाए।

12. आयुष द्वारा पब्लिक हेल्थ के मुद्दों पर ग्लोबल रिसर्च करने की सम्भावनाओं पर भी आयुष मंत्रालय को कार्य करना है।

13. ऐसा भी सुनने में आ रहा है कि आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के अति उत्पादन और अंधाधुंध दोहन से कहीं कहीं ‘इकोलोजिकल स्ट्रेस’ की अवस्था आ रही है। आयुष मंत्रालय को अब इस पर अब नियंत्रण करने की आवश्यकता है।

14. गुड एग्रीकल्चरल प्रक्टिसेस, गुड लेबोरेटरी प्रक्टिसेस, गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रक्टिसेस, गुड एथिकल हेल्थ केयर प्रक्टिसेस की अवधारणा को आयुष मंत्रालय द्वारा देश में स्थापित करने की आवश्यकता है।

15. जिस प्रकार आज अनेकों पाश्चात्य चिकित्सा की दवाओं ने अपने विशिष्ट साल्ट्स के दम पर अपनी धाक जमाई हुई है उसी प्रकार आयुर्वेद के कुछ ग्लोबल ब्रैंड स्थापित होने चाहिए।

16. कम्प्यूटर और आई.टी. तकनीकों को आयुष चिकित्सा प्रणाली में समाहित करके अनेकों आयुष चिकित्सा और निदान के सॉफ्टवेयर भी बनाये जा सकते है।

17. विदेशों में आजकल आयुष चिकित्सा में हज़ारों वर्षों से उपयोग में आने वाली औषधियों को पेटेंट करवा कर भारत के मौलिक ज्ञान को चुराया जा रहा है; इस पर एक दीर्घकालिक योजना बना कर कार्य करने की जरूरत है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि वर्तमान में देश को कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जिसका समाधान आयुर्वेद और आयुष चिकित्सा के पास है। उदाहरण के लिए नॉन कम्युनिकेबल डिसीज़ , माता और शिशु कल्याण , जीवन शैली संशोधन , पोषण , रोगों की रोकथाम में आयुर्वेद एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। अब समय आ गया है जब आयुर्वेद की असीमित क्षमताओं का उपयोग किया जाए। आयुष मंत्रालय के गठन से यह सब संभव लगने लगा है। चीन ने अपनी राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति को सम्मान देकर उसके लिए करोड़ों युआन का इन्वेस्टमेंट करके उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। काफी हद तक उसकी पद्धति की विश्व में अलग पहचान बन चुकी है; उसी तरह भारत में आयुष को बढावा देने के लिए अलग मंत्रालय का गठन हुआ है; तो निश्चित ही इसके दूरगामी परिणाम होंगे जो अंततः भारत और आयुर्वेद के ही पक्ष में होंगे।

(लेखक सेdrswastikjain@hotmail.comपर संपर्क किया जा सकता है )

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